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किशोरावस्था वह वय होती है, जब ऊर्जा का प्रस्फुटन उद्घाटित होता है| नव चेतना, नव उत्साह से उत्तरदायित्व का निर्वहन करने की प्रवृतियाँ जाग्रत होने लगती हैं| इस समय यदि छात्रों को सकारात्मक विचारधारा से जोड़ दिया जाए तो आत्मविश्वास की अजस्र धारा प्रवाहित हो सकती है, जिससे न केवल देश का अपितु विश्व के कल्याण एवं विकास के प्रति जागरूकता का भाव विकसित होगा| इसी विचार एवं भाव को ध्यान में रखकर प्रांगण प्रमुख सुश्री मनप्रीत भान के कुशल निर्देशन एवं मार्गदर्शन में हिन्दी विभाग द्वारा कक्षा पाँचवीं के छात्रों के लिए वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में चौबीस (२४) छात्रों ने प्रतिभागिता की,एवं
"पदाधिकारी बने बिना भी मैं देश के विकास में सहयोग दे सकता हूँ /सकती हूँ।"
विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए
सुश्री मंजू देवांगन एवं सुश्री सीमा आयोजन के निर्णायक रहीं।
आयोजन के अंत में प्रांगण गतिविधि प्रभारी सुश्री कविता जैन ने धन्यवाद ज्ञापित किया किया।
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